आप सभी जानते और मानते हैं कि दिल्ली मेट्रो रेल दिल्ली की शान है और ठीक ही मानते हैं। दिल्ली मेट्रो रेल ने दिल्ली में सफर करने के तौर-तरीके को बदल डाला है। यह एक तेज़, सुरक्षित और सुविधाजनक परिवहन माध्यम है। दिल्ली मेट्रो रेल के निर्माण से लेकर उसके रख-रखाव और प्रचालन; आपरेशन तक के कामों में आज हज़ारों मज़दूर लगे हुए हैं। इनमें से अधिकांश; 90 प्रतिशत से भी ज़्यादा ठेके पर काम करते हैं। केवल टिकट वेंडिंग, हाउसकीपिंग से लेकर सिक्योरिटी में करीब 10,000 से अधिक कर्मचारी लगे हुए हैं। निर्माण कार्यों लगे हज़ारों मज़दूरों का तो कोर्इ रिकार्ड ही नहीं है क्योंकि डी.एम.आर.सी. उनसे कोर्इ मतलब ही नहीं रखती है। कमोबेश यही स्तिथि मेट्रो रेल में काम करने वाले समस्त ठेका मज़दूरों की है। यही वे कामगार हैं जिनके बूते आज दिल्ली की आबादी इस आधुनिक और उन्नत परिवहन सेवा का लाभ उठा सकती है।
लेकिन क्या आपको पता है कि इस पूरी ठेका मज़दूर आबादी से किन हालात में काम करवाया जाता है?
क्या आप जानते हैं कि जो युवक या युवती यात्रियों की लम्बी-लम्बी लाइनों को यात्रा करने के लिए टोकन बनाकर देने में दिन भर लगे रहते हैं, उन्हें सरकार द्वारा तय न्यूनतम मज़दूरी, र्इ.एस.आर्इ., पी.एपफ और डबल रेट ओवरटाइम तक नहीं दिया जाता है? क्या आप जानते हैं कि जिन सफार्इ कर्मचारियों की हाड़तोड़ मेहनत के कारण मेट्रो रेल के स्टेशन दमदमाते रहते हैं, उन्हें साप्ताहिक छुटटी, न्यूनतम मज़दूरी, डबल रेट ओवरटाइम, र्इ.एस.आर्इ.-पी.एपफ आदि तक नहीं दिया जाता? क्या आप जानते हैं कि इन मज़दूरों को काम पर रखने से पहले बेदी एंड बेदी, टि्रग, आल सर्विसेज़, ए टू जेड, प्रहरी आदि जैसी कुख्यात ठेका कम्पनियाँ सिक्योरिटी राशि के नाम पर 40 से 70 हज़ार रुपये तक लेती हैं, ताकि ये मज़दूर अपने शोषण और कम्पनियों की तानाशाही के खि़लाफ कुछ न बोल सकें? क्या आपको मालूम है कि इतनी रकम ऐंठने के बाद भी ज़्यादातर मामलों में इन मज़दूरों को साल भर के भीतर ही नाजायज़ तरीके से काम से निकाल दिया जाता है ताकि उन्हें स्थायी मज़दूर की मान्यता न देनी पड़े? क्या आपको पता है कि कानूनन दिल्ली मेट्रो रेल कारपोरेशन सप़फार्इ, टिकट-वेंडिंग व सिक्योरिटी के कामों में ठेका मज़दूर नहीं रख सकता, क्योंकि ये सभी स्थायी प्रकृति के काम हैं? लेकिन 'मेट्रो-मैन' श्रीधरन के नेतृत्व में डी.एम.आर.सी. खुलेआम और धड़ल्ले से कानूनों को तोड़ रही है। और विडम्बना की बात तो यह है कि मीडिया द्वारा बनायी गयी साफ-सुथरी छवि को चमकाने के लिए श्रीधरन भ्रष्टाचार-विरोधी अभियान में अण्णा हज़ारे के मंच पर पहुँच जाते हैं! कैसी नौटंकी है! बेहतर होता कि पहले वह डी.एम.आर.सी. में हावी भ्रष्टाचार का खात्मा करते। मेट्रो मज़दूर श्रम कानूनों के उल्लंघन, गुलामों जैसी स्तिथियों में काम करवाये जाने, सिक्योरिटी राशि के नाम पर घूसखोरी, मनचाहे तरीके से हायर-पफायर किये जाने के खि़लाफ पिछले कुछ वर्षों से संघर्ष कर रहे हैं। हम जानते हैं कि आप भी एक इंसाफपसन्द नागरिक के तौर पर इस बात को मानेंगे कि मज़दूरों को यदि न्यूनतम मज़दूरी और साप्ताहिक छुटटी भी नहीं मिलेगी और उनके साथ गुलामों-सा बर्ताव किया जाएगा तो इसका सीधा असर सेवाओं पर
पड़ेगा। एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में आप यह भी मानते होंगे कि डी.एम.आर.सी. को इस देश के संविधान और कानूनों की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाने का कोर्इ अधिकार नहीं है। हम इन कानूनी और संविधान-प्रदत्त अधिकारों से ज़्यादा कुछ नहीं माँग रहे हैं। हमारा संघर्ष सिर्फ यह है कि सरकार और उसके उपक्रम जो वायदा करते हैं, वह उन्हें पूरा करना चाहिए।
हम अव्यवस्था के समर्थक अराजक तत्व नहीं हैं, बलिक हम मेट्रो में जारी अराजकता को खत्म करने का
प्रयास कर रहे हैं। इसमें हमें आपकी सहायता और समर्थन की आवश्यकता है। मेट्रो रेल में जारी अराजकता के कारण पहले ही उसकी एक सहायक सेवा की रीढ़ टूट चुकी है। मेट्रो फीडर बस सेवा, क्या आप जानते हैं कि यह सेवा क्यों चरमरा गयी? इसका कारण यह था कि डी.एम.आर.सी. ने इस सेवा का ठेका जिस कम्पनी ; आर.बी.टी. को दिया था उसने श्रम कानूनों की खुल्लम-खुल्ला धज्जियाँ उड़ार्इं और फीडर सेवा चलाने वाले कर्मचारियों ने इसके खि़लाफ संघर्ष किया। नतीजतन, डी.एम.आर.सी. ने श्रम कानूनों को लागू करवाने की बजाय कम्पनी का ठेका ही रदद कर दिया और आज स्तिथि यह है कि अनौपचारिक तरीके से ट्रांसपोर्ट काण्ट्रैक्टरों से थोड़ी-बहुत मेट्रो फीडर बसें चलवार्इ जा रही हैं, ठीक वैसे ही जैसे की ब्लू लाइन बसें चलती हैं। इन सबका परिणाम यह है कि मेट्रो फीडर सेवा का भटटा बैठ गया। सिर्फ इसलिए क्योंकि डी.एम.आरसी.
का सरोकार मज़दूरों को उनके कानूनी अधिकार मुहैया कराने से नहीं है उसका ठेका कम्पनियों से बस एक कहना है:
श्रम कानूनों का उल्लंघन करना है तो करो! लेकिन यह बात हम तक या बाहर नहीं पहुँचनी चाहिए, इसे अपने तक ही दबाकर रखो! सच्चार्इ तो यह है कि डी.एम.आर.सी. के पास ठेका कम्पनियों के तहत काम कर रहे सभी कर्मचारियों का कोर्इ प्रत्यक्ष रिकार्ड तक नहीं है। एक सूचना अधिकार याचिका के जवाब में डी.एम.आर.सी. ने इसे माना है। इसी से साफ हो जाता है कि वह श्रम कानूनों के लागू किये जाने को सुनिशिचत नहीं करती है। इसके लिए जिन ठेका कम्पनियों को श्रम कानूनों को लागू करना है, उन्हीं से लिखित में यह कहलवा दिया जाता है कि वे सभी श्रम कानूनों को लागू करती हैं! आप खुद देख सकते हैं कि यह कैसा भददा मज़ाक है! वेतन दिये जाते समय डी.एम.आर.सी. का कोर्इ अधिकारी मौजूद नहीं होता है, जो कि सीधे-सीधे कानून का उल्लंघन है। कुल मिलाकर, दिल्ली मेट्रो रेल की ऊपरी चमक-दमक के नीचे भ्रष्टाचार, कानूनों के उल्लंघन, ठेकाकरण, निजी ठेका कम्पनियों की तानाशाही, मज़दूरों के दुख-तकलीफ की एक काली दुनिया है। हम इसी स्तिथि को बदलना चाहते हैं।
साथियो! हम आप सबसे अपील करते हैं कि हमारे संघर्ष का समर्थन कीजिये। हम ज्यादा नहीं सिर्फ कानून-प्रदत्त अधिकार माँग रहे हैं। हमारी माँग है कि दिल्ली मेट्रो को सच्चे मायने में एक विश्व-स्तरीय संस्था केवल तब बनाया जा सकता है जब भ्रष्टाचार, स्वेच्छाचार, और तमाम किस्म के गोरखधंधों का मेट्रो रेल से सफाया हो जाय, जो कि ठेका कम्पनियों और डी.एम.आर.सी. की मिलीभगत से चल रही है। हम आपसे मेट्रो मज़दूरों द्वारा 10 जुलार्इ को जन्तर-मन्तर पर किये जा रहे विरोध-प्रदर्शन में आने की अपील करते हैं। आपकी मौजूदगी से हम संघर्षरत मज़दूरों का हौसला बुलन्द होगा और डी.एम.आर.सी. को हमारी बात सुनने और कानूनों का पालन करने को बाध्य होना पड़ेगा। कृपया इस विरोध प्रदर्शन में उपस्थित होकर हमारी हौसला अफ़ज़ार्इ करें।सुबह 11 बजे, 10 जुलार्इ को डी.एम.आर.सी. व उसकी ठेका
कम्पनियों द्वारा श्रम कानूनों के उल्लंघन के खि़लाप़फ
जन्तर-मन्तर पर मेट्रो मज़दूरों का विशाल प्रदर्शन
दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन
मेट्रो मज़दूर अधिकार समर्थक नागरिक मोर्चा
सम्पर्क: अजय-9540436262, प्रवीण-9289457560, शिवानी-9711736435, आशीष-9211662298, प्रेमप्रकाश-9999750940,
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