
सुबह 11 बजे, 10 जुलार्इ को डी.एम.आर.सी. व उसकी ठेका
कम्पनियों द्वारा श्रम कानूनों के उल्लंघन के खि़लाफ
जन्तर-मन्तर पर मेट्रो मज़दूरों का विशाल प्रदर्शन
दिल्ली मेट्रो रेल के निर्माण से लेकर उसके रख-रखाव और प्रचालन; आपरेशन तक के कामों में आज हज़ारों मज़दूर लगे हुए हैं। इनमें से अधिकांश; 90 प्रतिशत से भी ज़्यादा ठेके पर काम करते हैं। केवल टिकट वेंडिंग, हाउसकीपिंग से लेकर सिक्योरिटी में करीब 10,000 से अधिक कर्मचारी लगे हुए हैं। निर्माण कार्यों लगे हज़ारों मज़दूरों का तो कोर्इ रिकार्ड ही नहीं है क्योंकि डी.एम.आर.सी. उनसे कोर्इ मतलब ही नहीं रखती है। कमोबेश यही स्तिथि मेट्रो रेल में काम करने वाले समस्त ठेका मज़दूरों की है। यही वे कामगार हैं जिनके बूते आज दिल्ली की आबादी इस आधुनिक और उन्नत परिवहन सेवा का लाभ उठा सकती है। दिल्ली मेट्रो रेल की ऊपरी चमक-दमक के नीचे भ्रष्टाचार, कानूनों के उल्लंघन, ठेकाकरण, निजी ठेका कम्पनियों की तानाशाही, मज़दूरों के दुख-तकलीफ की एक काली दुनिया है। हम इसी स्तिथि को बदलना चाहते हैं।दिल्ली मेट्रो रेल की ऊपरी चमक-दमक के नीचे भ्रष्टाचार, कानूनों के उल्लंघन, ठेकाकरण, निजी ठेका कम्पनियों की तानाशाही, मज़दूरों के दुख-तकलीफ की एक काली दुनिया है। हम इसी स्तिथि को बदलना चाहते हैं।
साथियो! हम आप सबसे अपील करते हैं कि हमारे संघर्ष का समर्थन कीजिये। हम ज्यादा नहीं सिर्फ कानून-प्रदत्त अधिकार माँग रहे हैं। हमारी माँग है कि दिल्ली मेट्रो को सच्चे मायने में एक विश्व-स्तरीय संस्था केवल तब बनाया जा सकता है जब भ्रष्टाचार, स्वेच्छाचार, और तमाम किस्म के गोरखधंधों का मेट्रो रेल से सफाया हो जाय, जो कि ठेका कम्पनियों और डी.एम.आर.सी. की मिलीभगत से चल रही है। हम आपसे मेट्रो मज़दूरों द्वारा 10 जुलार्इ को जन्तर-मन्तर पर किये जा रहे विरोध-प्रदर्शन में आने की अपील करते हैं। आपकी मौजूदगी से हम संघर्षरत मज़दूरों का हौसला बुलन्द होगा और डी.एम.आर.सी. को हमारी बात सुनने और कानूनों का पालन करने को बाध्य होना पड़ेगा। कृपया इस विरोध प्रदर्शन में उपस्थित होकर हमारी हौसला अफ़ज़ार्इ करें।
सम्पर्क: अजय-9540436262, प्रवीण-9289457560, शिवानी-9711736435, आशीष-9211662298, प्रेमप्रकाश-9999750940,
दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन
दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन
मेट्रो मज़दूर अधिकार समर्थक नागरिक मोर्चा

यह दिल्ली और केन्द्र सरकार के लिए शर्म की बात है कि मजदूरों को कानूनों की पालना के लिए भी आंदोलन करना पड़ता है। इस से पता लगता है कि जनता की कही जाने वाली ये सरकारें जनता की नहीं सिर्फ और सिर्फ पूंजीपतियों की चाकर हैं।
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