Sunday, 3 July 2011

इसी दुनिया की यही है रीत! संघर्ष करोगे मिलेगी जीत!!


इस बार 1 मई को मजदूर दिवस के दिन मेट्रो रेल के ठेका मजदूरों ने भी जन्तर-मन्तर पर एकजुट हुए हज़ारों मजदूरों के साथ अपने हकों-अधिकारों के लिए आवाज उठाई। सोचने की बात है कि विश्व का सबसे बड़ा जनतंत्र होने का दावा करने वाला देश अपने करोड़ों मजदूरों को संविधान-प्रदत्त श्रम अधिकार भी नहीं देता। आज दिल्ली मेट्रो रेल को ‘‘वर्ल्ड क्लास’’ मेट्रो का दर्जा प्राप्त हैं। दिल्ली की मुख्यमंत्री से लेकर मीडिया तक इसके गुणगान गाते हैं, दिल्ली के खाते-पीते घरों के लोग भी मेट्रो रेल देखते हैं तो फूला नहीं समाते। लेकिन क्या उन्हें पता हैं कि ‘‘वर्ल्ड क्लास’’ मेट्रो रेल को बनाने व चलाने वाले हज़ारों मज़दूरों की जि़न्दगी को मेट्रो प्रशासन और ठेकेदारों ने नरक से भी बदतर बना रखा है?

साथियो, आप सभी को पता होगा कि मेट्रो परिचालन में तीन प्रकार के कामों को ठेका कम्पनियों द्वारा चलाया जाता हैं: टिकेटिंग, सिक्योरिटी और हाउसकीपिंग। हर तरह की मेंटेनेंस सुविधाओं की सेवा उपलब्ध कराने का दावा करने वाली ये ठेका कम्पनियां अपने कर्मचारियों को कोई सुविधा नहीं देती। यूं तो दिल्ली सरकार ने कागजों पर न्यूनतम मजदूरी बढ़ा दी लेकिन मेट्रो में कार्यरत मजदूरों को आज भी न तो न्यूनतम  मजदूरी मिलती न ही पीएफ, ईएसआई आदि की सुविधा। दूसरी ओर ठेका कम्पनियों की इस अंधेरगर्दी पर मेट्रो प्रशासन गूंगा-बहरा बना रहता है। असल में, सारे कानूनों को कायदे से लागू करने की जिम्मेदारी मेट्रो-प्रशासन की हैं क्योंकि कानूनन मेट्रो प्रशासन ही सभी ठेका मजदूरों का प्रमुख नियोक्ता हैं। यह कैसा भद्दा मज़ाक है कि ‘‘मेट्रो मैन’’ ई. श्रीधरन अन्ना हज़ारे के भ्रष्टाचार-विरोधी नौटंकी में शामिल होते हैं लेकिन मेट्रो में मजदूरों के साथ हो रहे भ्रष्टाचार पर एक शब्द भी नहीं बोलते! ऐसे में साफ हैं कि मेट्रो प्रशासन और ठेका कम्पनियां की मिलीभगत से ही मजदूरों का शोषण और उत्पीड़न हो रहा हैं।

साथियो! मेट्रो प्रशासन और ठेका कम्पनियों की इस तानाशाही का प्रत्यक्ष उदाहरण अभी हाल की घटना हैं जिसमें ट्रिग कम्पनी द्वारा पिछले तीन महीने में 100 से ज्याद टॅाम आपरेटरों (टिकेटिंग व मेंटेनेंस स्टाफ) को बिना किसी कारण काम से बाहर कर दिया गया या फिर कैष में कमी आने पर टाम आपरेटर को बिना चेतावानी दिये ही बाहर कर दिया गया है, जबकि तीन चेतावनियों का नियम है! दोस्तो! टाम आपरेटर, गार्ड्स, और हाउसकीपरों पर हो रहे अन्याय के खिलाफ हमें आवाज बुलन्द करनी होगी। अगर हम एकजुट होकर अपने हक़ों के लिए लड़ें तो हम निश्चित तौर पर जीतेंगे। अलग-अलग रहकर हम कुछ नहीं कर सकते। लेकिन हम एकजुट होकर संगठित लड़ाई लड़ें तो हज़ारों मेट्रो स्टेशन स्टाफ को कौन हरा सकता है? हम सभी कम्पनियों के तहत काम करने वाले टाम आपरेटरों से भी कहेंगे कि वे संघर्ष में साथ आएँ।

हम मेट्रो प्रशासन के सक्षम निम्न जायज मांगे ररखते हैं-


  1.    अन्यायपूर्ण तरीके से निकाले गऐ टाॅम आॅपरेटरों व अन्य कर्मचारियों को वापस लिया जाए।
  2.     न्यूनतम मजदूरी तथा पेस्लिप के साथ समय पर भुगतान किया जाए।
  3.     हाउसकीपरों, गार्डों और टाम आपरेटरों के लिए सभी श्रम कानूनों को लागू किया जाए तथा कानून का उल्लंघन करने वाली कम्पनियों को दण्डित किया जाए।
  4.     दिल्ली मेट्रो रेल के हर विभाग से ठेका प्रथा ख़त्म की जाए।

इन चार माँगे के साथ हम संघर्ष की नयी शुरूआत करे रहे हैं क्योंकि बिना संघर्ष के कुछ नहीं मिलता। वैसे आप सभी जानते होंगे कि मेट्रो और ठेका कम्पनियों के शोषण और अन्याय के खिलाफ पहले भी ‘दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन’ ने कई संघर्ष लड़े हैं, जिनमें कुछ जीतें भी हासिल हुई। लेकिन अभी-भी ज़्यादातर मजदूरों यूनियन के सदस्य नहीं हैं। साथियो! हमारी असली ताकत हमारी यूनियन है! इसलिए यूनियन के सदस्य बनें और यूनियन की ताकत को मजबूत बनाएँ! उनकी ताक़त सत्ता और धन है, हमारी ताक़त यूनियन है!

दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन

No comments:

Post a Comment