Tuesday, 12 June 2012


दिल्ली के इंसाफपसंद नागरिकों के नाम दिल्ली मेट्रो रेल मज़दूरों की अपील!
वातानुकूलित दिल्ली मेट्रो में जून की गर्मी में भी यात्रा करते हुए आपको काफी राहत मिलती है। आप सुरक्षित, तेज, सुविधजनक परिवहन माध्यम के लिए दिल्ली मेट्रो को धन्‍यवाद देते होंगे। आप मेट्रो को दिल्ली की शान मानते हैं लेकिन दिल्ली मेट्रो जैसी परिवहन सुविधा आपको उपलब्ध हो सके इसके लिए हजारों मज़दूर दिन-रात काम पर लगे रहते हैं। इनमें से अधि‍काश ठेका मज़दूर हैं। केवल टिकट वेडिंग, हाउस कीपिंग एवं सिक्योरिटी में 5,000 से अध्कि कर्मचारी लगे हुए हैं। मेट्रो निर्माण कार्यों में लगे हजारों मज़दूरों का कोई रिकार्ड ही उपलब्ध नहीं है। यह वही मज़दूर आबादी है जिसके बल पर आप एक उन्नत और आधुनि‍क परिवहन सेवा का लाभ उठा पा रहे हैं।
अगर मेट्रो उद्घोषणाओं की तरह टोकन और यात्री कार्ड बोल सकते तो वे बताते की जो युवक या युवतियाँ लम्बी-लम्बी लाइनों को यात्रा करने के लिए टोकन बनाकर देते हैं। उन्हें सरकार द्वारा तय की गयी न्यूनतम मज़दूरी तक नहीं मिलती, पी.एपफ., ई.एस.आई. व साप्ताहिक छुट्टी की बात ही क्या। इन टाम आपरेटरों से नियुक्ति के समय ठेका कम्पनियाँ रु.25,000 सिक्योरिटी राशि के नाम पर वसूल कर लेती हैं और साथ ही साथ खाली बर्खास्तगी के कागज पर भी हस्ताक्षर करवा लिया जाता है। बाद में कभी छह महीने में तो कभी सालभर में मनमाने तरीके से टाम आपरेटरों की छँटनी कर दी जाती है। अगर मेट्रो की चमकती सीढि़याँ, पफर्श तथा खम्भे बोल सकते तो वे आपको बताते कि जिन मज़दूरों ने इनको रगड़-रगड़ कर सापफ किया है, चमकाया हैऋ उनको न्यूनतम मज़दूरी तक नहीं मिलती। ठेकेदारों द्वारा उनका गुलामों की तरह शोषण किया जाता है। सिक्योरिटी गार्डों को भी न तो न्यूनतम मज़दूरी मिलती है और न ही अन्य सुविधएँ। इन मज़दूरों को काम पर रखने वाली ठेका कम्पनियाँ ट्रिग, आल सर्विसेज, केशव, ए.टू.जेड., प्रहरी तथा जे.एम.डी आदि तो तानाशाहीपूर्ण तरीके से मज़दूरों की छँटनी करती रहती हैं। कानूनन दिल्ली मेट्रो रेल काॅपोरेशन टिकटिंग, सिक्योरिटी एवं सफाई का काम जो कि स्थायी प्रकृति के हैं। ठेका पर नहीं दे सकता। लेकिन खुद डी.एम.आर.सी. इसे ठेका पर देकर कानूनों का उल्लंघन कर रहा है। ऐसा नहीं है कि ठेका कम्पनियों द्वारा श्रम कानूनों के उल्लंघन की मेट्रो प्रशासन को जानकारी नहीं है बल्कि वह खुद श्रम कानूनों के उल्लंघन में शामिल है।
मेट्रो मज़दूर श्रम कानूनों के उल्लंघन, गुलामों जैसी स्थितियों में काम करवाये जाने, सिक्योरिटी राशि के नाम पर घूसखोरी एवं गैरकानूनी छँटनी के खिलापफ पिछले कुछ वर्षों से संघर्ष कर रहे हैं। आप भी एक इंसापफपसंद नागरिक के तौर पर इस बात को मानेंगे कि यदि मज़दूरों को न्यूनतम मज़दूरी एवं साप्ताहिक छुट्टी तक नहीं मिलेगी, उनके साथ मनमाने ढंग से छँटनी की जाएगी तो उसका असर सेवाओं पर पड़ेगा। आप यह भी मानते होंगे कि डी.एम.आर.सी. को खुलेआम कानूनों एवं संविधन की धज्‍जि‍यां उड़ाने का कोई अधि‍कार नहीं है। हम कानून प्रदत्त अपने अध्किारों से अध्कि कुछ भी नहीं माँग रहे। हमारी माँग बस इतनी है कि सरकार और उसके उपक्रम जिन श्रम कानूनों को लागू करने का वायदा करते हैं उन्हे लागू करें। मेट्रो की चमकदमक के नीचे भ्रष्टाचार, कानूनों का उल्लंघन, ठेकाकरण, निजीकरण, निजी कम्पनियों की तानाशाही और मज़दूरों के दुख तकलीपफों की अन्धकाररमय दुनिया है। हम इस स्थिति को बदलना चाहते है।
साथियों! हम अपने कानून-प्रदत्त अधि‍कार माँग रहे हैं। दिल्ली मेट्रो को एक विश्वस्तरीय संस्था तभी बनाया जा सकता है जब भ्रष्टाचार, शोषण और तमाम किस्म के गोरखधन्‍धा का सफाया हो जाए जब डी.एम.आर.सी. और ठेका कम्पनियों की मिलीभगत बन्द हो। हम आपसे अपील करते है कि‍ दि‍ल्‍ली मेट्रो कामगार यूनि‍यन का समथर्न करें ताकि‍ दिल्ली मेट्रो में हो रहे मज़दूरों के शोषण को रोका जा सके और मेट्रो को भ्रष्टाचार व शोषण मुक्त विश्वस्तरीय परिवहन व्यवस्था बनाया जा सके ।

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