Thursday, 8 September 2011

मेहनतकश की वर्ग एकता जिन्‍दाबाद

देश के अन्‍दर 45 करोड ठेका, दिहाडी, पीस रेट के मजदूरों  के हालात  गुलामों जैसे हैं कहने को देश में ठेका कानून 1970 ( नियमन और उन्‍नमूलन) मौजूद हैं लेकिन हम 40 वर्षों से देख रहे हैं इस कानून के तहत ठेका उन्‍नमूलन नहीं बल्कि ठेका प्रथा जोर शोर से लागू करने का काम किया हैं आज मेट्रो रेल, मारूति या तमाम कारखानों से लेकर खेतीहर मजदूर के हक अधिकार छीने जा रहे हैं सरकार द्वारा तय न्‍यूनतम मजदूरी ठेकेदारों और मालिकों के लिए चुटकले से कम नहीं हैं खुले आम श्रम कानूनों का उल्‍लंघन किया जाता है और श्रम विभाग सब कुछ जानते हुए भी गूंग बहरा बना रहता हैं साफ हैं मजदूरों को कागजों पर दर्ज कानूनी हकों के लिए जुझारू संगठन बनाने होगा 

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